मूल अधिकार – (Fundamental Rights) –
- मूल अधिकार – (Fundamental Rights) भारत में मूल अधिकार के संबंध में विस्तृत (असीमित नहीं) प्रावधान तथा इसके संरक्षणवादी उपाय इसे विशिष्ट महत्व प्रदान करते हैं |
- (Fundamental Rights) – इसे संविधान की आत्मा एवं मैग्नाकार्टा की तरह माना जाता है , हमारे संविधान का (अमेरिका के Bill of rights बिल ऑफ राइट्स से प्रेरित) सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाग है
- जिसे अनुच्छेद 12 से 35 योग भाग – 3 में वर्णित किया गया है |
- संविधान सभा (54 सदस्य मूल अधिकार समिति के अध्यक्ष सरदार पटेल) द्वारा इन्हें 7 वर्गों में “सीधे संविधान के आधीन नागरिकों” (कुछ सभी व्यक्तियों को) को दिए गए थे |
- “44 वें संविधान संशोधन “(1978) द्वारा “मोरारजी देसाई “की सरकार ने संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकार की सूची अनुच्छेद 31 से हटाकर (300A) में कानूनी अधिकार के रूप में शामिल कर दिया गया है |
प्राकृतिक में नकारात्मक – मूल अधिकार (Fundamental Rights)
- यह मूल अधिकार अपनी प्राकृतिक में नकारात्मक है |
- अर्थात राज्य इन में (संविधान में दिए गए निर्देशों के अतिरिक्त) हस्तक्षेप नहीं करते |
- यही नहीं इन मूल अधिकारों को संरक्षण भी दिया गया है |
- मूल अधिकारों के संरक्षण का दायित्व न्यायपालिका (अनुच्छेद 13 सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट को) दिया गया है |
- मूल अधिकार व्यक्ति के चतुर्दिक विकास हेतु अपरिहार्य एवं वास्तविक लोकतंत्र का प्रतीक है | लोककल्याणकारी राज्य हेतु आवश्यक है राष्ट्रीय आंदोलन की भावना सीधे मूल अधिकार से जुड़ी हुई है |
ध्यान रहे – मूल अधिकार असीमित एवं निरंकुश भी नहीं है |
स्वयं संविधान में इन पर युक्तिसंगत प्रतिबंध लगाने की शक्ति राज्य को ( सुरक्षा , शांति, लोकहित , एकता अखंडता अखंडता के आधार पर ) दी गई है |
अमेरिका , ब्रिटेन , अन्य पश्चिमी देशों ( अमेरिका ,ब्रिटेन, फ्रांस , की तुलना में मूल अधिकार अधिक व्यापक एवं न्याय संगत है) क्योंकि सरकार को कोई भी अंग (कार्यपालिका , न्यायपालिका , विधायिका) में हस्तक्षेप नहीं कर सकते |
मूल अधिकार पर संसद के संशोधन की शक्ति –
- अनुच्छेद 368 के प्रश्न पर स्थिति विवाद पूर्व थी |
- सुप्रीम कोर्ट ने गोलकनाथ v/s पंजाब राज्य में कहा था | कि मूल अधिकारों का संशोधन नहीं किया जा सकता |
- “केसवानंद भारती v/s केरल राज्य” (1973) के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए फैसले के बाद , की संसद में अधिकार सहित पूरे संविधान में (Basic Structure) संशोधन कर सकती है |
- 44 संविधान संशोधन द्वारा (1978 जनता पार्टी सरकार) समाप्त कर संपत्ति के अधिकार को अनुच्छेद 31 से हटाकर (300A) में विधि अधिकार के रूप में शामिल किया गया |

भारतीय संविधान के सूत्र –मूल अधिकार (Fundamental Rights)
- ब्रिटिश संविधान संसदीय शासन प्रणाली, कानून बनाने की प्रक्रिया और एकल नागरिकता।
- दक्षिण अफ्रीकी संविधान संशोधन प्रणाली।
- कनाडा संघीय प्रणाली का गठन, केंद्र सरकार के तहत अवशिष्ट शक्तियां।
- अमेरिकी संविधान प्रस्तावना, मौलिक अधिकार, सर्वोच्च न्यायालय, न्यायिक समीक्षा, राष्ट्रपति के अधिकार और कार्य, उपाध्यक्ष की स्थिति और संशोधन प्रणाली।
- ऑस्ट्रेलियाई संविधान प्रस्तावना की भाषा, समवर्ती सूची और केंद्र-राज्य संबंध।
- जर्मनी के वीमर संविधान राष्ट्रपति के आपातकालीन अधिकार।
- जापानी संविधान कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया और शब्दावली
- रूसी संविधान मौलिक कर्तव्य।
- फ्रांसीसी संविधान गणराज्य।
- आयरलैंड का संविधान, राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत, राष्ट्रपति चुनाव परिषद, राज्यसभा में 12 सदस्यों का नामांकन।
- भारत सरकार अधिनियम –1935 इस अधिनियम के लगभग 200 लेख प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय संविधान के विभिन्न लेखों से मिलते जुलते हैं।
मौलिक अधिकार-
- भारत के संविधान के भाग 3 में मौलिक अधिकार और अनुच्छेद (12 से 35) से संबंधित प्रावधान हैं।
- भारतीय संविधान में, नागरिकों को 7 मौलिक या मौलिक अधिकार प्रदान किए गए थे |
- लेकिन 44 वें संविधान संशोधन 1978 द्वारा संपत्ति के मौलिक अधिकार को समाप्त कर दिया गया था |
- और अनुच्छेद 300 ‘A’ के तहत एक विविध अधिकार बनाया गया था। वर्तमान में, नागरिकों द्वारा प्राप्त मौलिक अधिकारों की संख्या 6 है।
- अनुच्छेद 21 (A) के तहत, सर्वोच्च न्यायालय ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना है।
आपातकाल में –
- (केवल अनुच्छेद 352 में ना कि राष्ट्रपति शासन एवं वित्तीय आपात में) 44 में संशोधन (1978) के बाद की स्थिति यह है | – कि (अनुच्छेद 20 AND 21) को छोड़कर सभी मूल अधिकार स्थगित किए जा सकते हैं |
- अनुच्छेद 33 के अनुसार सैन्य बल एवं अन्य सुरक्षा बलों पर संसद द्वारा मूल अधिकार (अनुशासन बनाए रखने के लिए) पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है |
- प्रेस AND समाचार पत्रों को स्वतंत्रता अनुच्छेद (19- 1( A) के अंतर्गत नागरिकों की तरह समान रूप से प्राप्त है) |
- शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 45) से हटाकर (86 में संशोधन द्वारा) 21A में शामिल कर दिया गया है |
- राष्ट्रपति और राज्यपाल को (अनुच्छेद 14) अर्थात समानता के अधिकार का अपवाद माना जाता है |
- “डॉक्टर भीमराव” – ने एक बार पूछे जाने पर कि कौन सा अनुच्छेद सर्वाधिक महत्वपूर्ण है ? “अनुच्छेद 32” संवैधानिक उपचारों के अधिकार को सर्वाधिक महत्वपूर्ण बताया था |
मूल अधिकारों का संरक्षण –
संवैधानिक उपचार (अनुच्छेद 32) के अंतर्गत पांच(5) प्रकार की याचिका विलेज(write petition ) द्वारा किया गया है –
- बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus )- अवैध गिरफ्तारी हेतु न्यायालय द्वारा जारी |
- परमादेश (Mandamus) – कर्तव्य के पालन हेतु |
- प्रतिषेध (Prohibition)
- उत्प्रेषण (Certiorari) – दोनों याचिकाओं दोनों न्यायिक नियंत्रण हेतु जारी किया गया है |
- अधिकार(Quo Warranto ) – अवैध दोहरा पद धारण करने के विरुद्ध जारी किया जाता है |
- सुप्रीम कोर्ट के “अनुच्छेद 32” के तहत तथा हाईकोर्ट के “अनुच्छेद 226” के अंतर्गत पर सुनवाई का अधिकार है |
- प्रतिषेध (Prohibition) के अंतर्गत याचिका तक जारी की जाती है – जब मामला न्यायालय में विचाराधीन हो |जबकि उत्प्रेषण को अंतिम आदेश पारित होने के बाद इसे कोर्ट द्वारा जारी किया जाता है |
- कुछ समीक्षकों का मत है कि – निवारक “निरोध(prevention detentions)” उपबंध अनुच्छेद 22 के कारण मूल अधिकार की भावना (राज्यों को अधिक शक्ति देने) से प्रभावित हुई है |

मौलिक अधिकारों की विशेषताएं –
- मौलिक अधिकार उपयुक्त हैं। राज्य उन पर उचित प्रतिबंध लगा सकते हैं। हालाँकि, प्रतिबंधों का औचित्य न्यायालय द्वारा ही तय किया जाता है।
- ये सरकार के एकतरफा फैसले के खिलाफ उपलब्ध हैं। हालांकि, उनमें से कुछ निजी व्यक्तियों के खिलाफ भी उपलब्ध हैं।
- इनमें से कुछ में नकारात्मक विशेषताएं हैं, जैसे कि राज्य प्राधिकरण को सीमित करने से संबंधित, जबकि कुछ सकारात्मक हैं, जैसे कि व्यक्तियों के लिए विशेष सुविधाओं का प्रावधान।
- वे स्थायी नहीं हैं। संसद इन्हें संवैधानिक संशोधनों के माध्यम से काट या कम कर सकती है।
- उन्हें राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 20 और 21 को छोड़कर) के दौरान निलंबित किया जा सकता है।
- वे सुप्रीम कोर्ट द्वारा गारंटीकृत और संरक्षित हैं।
मौलिक अधिकारों का महत्व –
- वे देश में एक लोकतांत्रिक प्रणाली स्थापित करते हैं।
- वे व्यक्तिगत स्वतंत्रता के रक्षक हैं।
- देश में कानून के शासन की व्यवस्था करें।
- वे सामाजिक समानता और सामाजिक न्याय की नींव रखते हैं।
- वे अल्पसंख्यकों और समाज के कमजोर वर्गों के हितों की रक्षा करते हैं।
आलोचना का बिंदु –
- मौलिक अधिकार कई अपवादों, प्रतिबंधों और व्याख्याओं के अधीन हैं।
- इसमें मुख्य रूप से राजनीतिक अधिकारों का उल्लेख है, सामाजिक-आर्थिक अधिकारों की व्यवस्था का अभाव है क्योंकि सामाजिक सुरक्षा का अधिकार, काम करने का अधिकार, आराम करने का अधिकार और सुविधा जैसे प्रावधान शामिल नहीं हैं।
- उनकी व्याख्या अस्पष्ट, अनिश्चित और धुंधली है। “उदाहरण” के लिए, सार्वजनिक व्यवस्था, अल्पसंख्यक, उचित प्रतिबंध और सार्वजनिक हित – जैसे शब्दों की व्याख्या अस्पष्ट है।
- मौलिक अधिकारों में स्थिरता का अभाव है। संसद उन्हें काट या कम कर सकती है।
- आलोचकों का कहना है कि निवारक निरोध का प्रावधान इसे मौलिक अधिकारों की मुख्य भावना में बदल देता है। यह राज्य को मनमानी शक्ति देता है।
- आम नागरिक को मौलिक अधिकारों के कार्यान्वयन में महंगी न्यायिक प्रक्रिया का सामना करना पड़ता है।
वास्तव में, अंतर्राष्ट्रीय न्यायिक सम्मेलन -2020 में अधिकारों और कर्तव्यों के मुद्दे पर चर्चा करते हुए, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा कि लोगों के कर्तव्यों का निर्वहन किए बिना अधिकारों की मांग करना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। मौलिक कर्तव्यों से नागरिकों को नैतिक जिम्मेदारी के बारे में भी पता चलता है। अधिकार और कर्तव्य एक दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरे की कल्पना नहीं की जा सकती। 1976 में, सरदार स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर, मौलिक कर्तव्यों की व्यवस्था 42 वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम द्वारा की गई थी।
कुछ समीक्षकों का मत है कि –
- निवारक “निरोध(prevention detentions)” उपबंध अनुच्छेद 22 के कारण मूल अधिकार की भावना (राज्यों को अधिक शक्ति देने) से प्रभावित हुई है |
- किंतु यह राय इसलिए तर्कसंगत नहीं क्योंकि संविधान में इसके लिए उचित आधार एवं दिशा निर्देश दिए गए हैं |
- तथा इनका प्रयोग सतत न्यायालय के निर्देश में होता है |
- इसी के द्वारा सरकार को कानून व्यवस्था बनाने में सहायता मिलती है |
अनुच्छेद 22 से प्रेरित होकर संसद द्वारा –
- एमआईएस(MISA-1971) राष्ट्रीय सुरक्षा एक्ट (नासा 1980)
- टाडॉ का ( 1985 )
- पोटा कानून (2002)
” निवारक कहानी आधीन व्यक्ति को 3 माह तक विरुद्ध किया जा सकता है “
निवारक कानून –
समवर्ती सूची का विषय होने से कई राज्यों ने (Maharashtra ,उत्तर प्रदेश(UTTAR PRADESH) ,मध्य प्रदेश(M.P), जम्मू एंड कश्मीर ) इस संबंध में अपनी विशेष कानून भी बनाए हैं |
अमेरिका ब्रिटेन की तुलना में –
भारतीय मूल अधिकार की प्रकृति अधिक व्यापक AUR महत्वपूर्ण है |
- अमेरिका में जहां न्यायपालिका तथा ब्रिटेन में संसद के विरुद्ध मूल अधिकारों के हनन की दशा में न्याय प्राप्त नहीं हो सकता | वहीं भारत में सरकार के तीनों अंग (कार्यपालिका ,विधायिका ,न्यायपालिका ) के विरुद्ध अधिकार न्याय योग्य है | अर्थात मूल अधिकार के हनन की दशा में (अनुच्छेद 32 )के अंतर्गत संवैधानिक उपचारों के माध्यम से पांच प्रकार की याचिका विवेक के द्वारा न्यायपालिका सुप्रीम हाईकोर्ट से उपचार उपलब्ध है |
- मूल अधिकारों के प्रश्न पर सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट को सुनवाई का समान अधिकार प्राप्त है |
- मूल अधिकारों की रक्षा हेतु याचिका हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में भी पहले दायर की जा सकती है |


मूल अधिकार (Fundamental Rights)