answers and questions related to Swami Vivekananda

राष्‍ट्र संत और दार्शनीक स्वामी विवेकानंद का 12 जनवरी को जन्म दिवस मनाया जाता है।

उनका जन्मदिन युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

उनका जन्म 12 जनवरी सन्‌ 1863 को कोलकाता में हुआ। वे श्री रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे।

अमेरिका के शिकागो में आयोजित धर्म संसद में उन्होंने प्रसिद्ध भाषण दिया था।

आओ जानते हैं उनके जीवन और व्यक्तित्व के संबंध में कुछ प्राश्नों के उत्तर।

Question: Why is Swami Vivekananda famous?

Answer: Swami Vivekananda is famous for six things,

  1. The first is that he is a disciple of Sri Ramakrishna Paramhansa.
  2. Second, he gave a very famous speech in Chicago.
  3. Thirdly that he had established Shri Ram Krishna Mission and Math.
  4. Fourth that his views influence the youth.
  5. He was the youth of modern India who explained the correlation between spirituality and human life.
  6. He introduced Hinduism to the whole world.

Question: How many hours did Swami Vivekananda sleep?

Answer: It is said that he used to sleep only for one and a half to two hours in the day and night. He used to take a nap of 15 minutes after every four hours.

Question: What was the slogan given by Swami Vivekananda? What was the slogan given by Swami Vivekananda?

Answer: There is a slogan of Swami Vivekananda, ‘Arise, awake and stop not till the goal is achieved’.

Question: What lesson do we get from the life of Swami Vivekananda?
Answer
: Swami Vivekananda teaches us to serve the Guru, keep moving towards the goal in life, protect religion and country, always read and learn and do human service.

Question: How did Swami Vivekananda study?
Answer: Vivekananda used to meditate, due to which his concentration was very intense. He was also very intelligent. That’s why he used to read 10-10 books in a single day and he used to remember what was written in which line and what was written on which page.

Question: Why didn’t Swami Vivekananda get married?
Answer
: He and his family were very poor. After the death of his father at the age of 21, he searched for a job but could not find it. Got many marriage proposals but he refused for this thinking that how can I keep my wife happy?

A rich woman proposed marriage to him so that his poverty would also go away. But he refused saying that it was like taking dowry. Then his mind started turning towards spirituality and at the age of 25 he took retirement.

प्रश्न : विवेकानंद ने देश के लिए क्या किया? स्वामी विवेकानंद का क्या योगदान था?

उत्तर : स्वामी विवेकानंद ने अपने ज्ञान के दम पर देश और धर्म को विदेशों में लोकप्रियता दिलाई।

भारत के दर्शन और अध्यात्मक का विदेश में प्रचार प्रसार किया।

अनेक स्थानों पर रामकृष्‍ण मिशन के माध्यम से शिक्षा एवं जन कल्याण के के कार्य किए।

विवेकानंद जातिवाद को समाज का कोढ़ मानते थे।

उनका संदेश जाति और पंथ की बेड़ियों को तोड़ता है और सार्वभौमिक भाईचारे की भाषा की बात करता है।

इसी के साथ अपने संदेशों से वह युवाओं की चेतना को जागृत करते थे, उनका मानना था कि युवा ही भारत का भविष्य हैं। 

Question: What was the name of the parents of Swami Vivekananda?
Answer
: 1.Swami Vivekananda’s father’s name was Vishwanath Dutt and mother’s name was Bhuvaneshwari Devi. Vishwanath Dutt was a famous lawyer practicing in the Calcutta High Court, while the mother was a homemaker with religious views. Vivekananda was the sixth child of his parents. Most of his 10 siblings died at a young age.

2,The fourth child of the family was Swarnmayi Devi, who lived to the age of 72. The first child was a son who passed away in 08 months. The other was a girl who lived for 2.5 years.

3.The third child was Haramoni Devi, who died at the age of 22. The fifth was also a girl, who could not live more than 05 years. The seventh child was Kiranbala Devi, who lived to the age of 16 or 18.

4.The eighth child was Jogindrabala Devi. Who committed suicide in Shimla in 1881 at the age of 25. After this Vivekananda’s younger brothers Mahendra Nath and Bhupendra Nath were born. He lived for a long time.

5.Mahendra Dutt became an Indian revolutionary. Bhupendra Dutt was the editor of Yugantar Patrika, which was considered to be an advocate of revolutionaries.

Question: What was the real name of Swami Vivekapanda?
Answer: His childhood home was named Veereshwar. The formal name was Narendranath Dutt. Later, he was named Vivekananda by Raja Ajit Singh of Khetri located in Shekhawati region of Rajasthan.

प्रश्न : स्वामी विवेकानंद का निधन कब और किन कारणों से हुआ।

उत्तर : मात्र 39 वर्ष की उम्र में 4 जुलाई 1902 को उनका निधन हो गया।

कहते हैं कि स्वामी जी को दमा और शुगर की बीमारी थी।

इसे लेकर उन्‍होंने कहा था, ‘ये बीमारियां मुझे 40 साल की उम्र भी पार नहीं करने देंगी।

स्वामी विवेकानंद का कर्म योग : –

प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि वह अपना आदर्श ले कर उसे अपने जीवन में डालने का प्रयत्न करें बजाय इसके कि वह दूसरों के आदर्शों को लेकर चरित्र करने की चेष्टा करें अपने ही आदर्श का अनुसरण करना सफलता का अधिक निश्चित मार्ग है संभव है दूसरे का आदर्श अपने जीवन में ढालने में कभी समर्थ ना हो उदाहरण के लिए हमें छोटे बच्चे से एकदम बिस्मिल चलने को कह दे तो या तो वह बेचारा मर जाएगा यदि हजार में से एक आधा रास्ता कहीं पहुंचा भी तो वह अधमरा हो जाएगा बस हम भी संसार के साथ ऐसा ही करने का प्रयत्न करते हैं किसी समाज के सब स्त्री पुरुष एक मन के होते हैं ना एक ही योग्यता के और ना एक ही शब्द के आता है उनमें से प्रत्येक आदर्श भी भिन्न-भिन्न होना चाहिए और इन आदर्शों में से एक का भी उपवास करने का हमें कोई अधिकार नहीं अपने आदर्श को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक को जितना हो सके यत्न करने दो ठीक है कि मैं तुम्हारे अथवा तुम मेरे आदर्श द्वारा जांची जाओ आम इमली से नहीं होनी चाहिए और ना ही आम से आम की तुलना के लिए आम ही लेना होगा और इमली के लिए इमली इसी प्रकार अन्य शब्द के संबंध में भी समझना चाहिए सृष्टि का नियम है बहुत महत्व प्रत्येक स्त्री पुरुष में व्यक्तिगत रूप से कितना भी पैदा हो उन सब के पीछे वह विद्यमान है पुरुषों के चरित्र एवं उनकी अलग-अलग श्रेणियों की स्वाभाविक विभिन्नता मात्र एक ही आदर्श द्वारा सबकी जांच करना अथवा सबके सामने एक ही आदर्श रखना किसी भी प्रकार से उचित नहीं है स्वाभाविक संघर्ष होता है कि मनुष्य स्वयं से धार्मिक एवं हमारा कर्तव्य है कि हम उसके अपने आदर्श को प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करें तथा दर्शकों के जितना निकटवर्ती हो सके जाने की चेष्टा करें हम देखते हैं कि हिंदू नीति शास्त्र में बहुत प्राचीन काल से ही अपनाया जा चुका है और हिंदुओं के धर्म शास्त्र तथा नीति संबंधी पुस्तकों में ब्रह्मचर्य गृहस्थ वानप्रस्थ सन्यास इन सब विभिन्न आश्रमों के लिए विभिन्न विधियों का वर्णन है हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार मानव जाति के साधारण कर्तव्यों के अतिरिक्त प्रत्येक मनुष्य के जीवन में कुछ विशेष कर्तव्य होते हैं लेकिन पहले ब्रह्मचर्य तथा छात्र जीवन का अवलंबन करना पड़ता है इसके बाद वह करके ग्रस्त हो जाता है वस्था में गृहस्थ आश्रम से अवकाश लेकर धर्म का अवलंबन करता है और अंत में संसार को त्याग कर सन्यासी हो जाता है जीवन के आश्रमों में भिन्न-भिन्न कर्तव्य होते हैं वास्तव में इन आश्रमों में कोई किसी से श्रेष्ठ नहीं है एक गृहस्थ जीवन भी उतना ही श्रेष्ठ है जितना कि एक ब्रह्मचारी का जिसने अपना जीवन धर्म कार्य के लिए अवसर दिया है कि भी उतना ही श्रेष्ठ है जितना कि एक सिंहासन राजा थोड़ी देर के लिए उधार दो और का काम दो फिर देखो वह कैसा काम करता है इसी प्रकार को राजा बना दो कैसे चलाता है संसार को छोड़कर सुशांत जीवन में रह कर ईश्वर उपासना करने की अपेक्षा संसार में रहते हुए ईश्वर की उपासना करना बहुत कठिन है आज भारत में जीवन के चार आश्रम घटकर केवल दो ही रह गए एवं सन्यास विवाह करता है और नागरिक बनकर अपने कर्तव्यों का पालन करता है तथा सन्यासी अपने समस्त शक्तियों को केवल ईश्वर उपासना एवं धर्म प्रदेश में लगा देता है मैं अब महानिर्वाण तंत्र से गृहस्थ के कर्तव्य संबंधी कुछ लोग उद्धृत करता हूं कि किसी व्यक्ति के लिए ग्रस्त होकर अपने कर्तव्यों का

परंतु फिर भी उसे निरंतर अपने सब कर्म करते रहना चाहिए अपने कर्तव्यों का पालन करते रहना चाहिए और अपने समस्त कर्मों के फलों को ईश्वर और पढ़ कर देना चाहिए गर्म करके कर्म फल की आकांक्षा ना करना किसी मनुष्य की सहायता करके उससे किसी प्रकार की कृतज्ञता की आसान ना रखना कोई सत्कर्म करके भी इस बात की ओर नजर तक ना देना कि वह हमें यश और कीर्ति देगा अथवा नहीं इस संसार में सबसे कठिन बात है संसार जब प्रशंसा करने लगता है तब एक निहायत बुजदिल भी बहादुर बन जाता है समाज के समर्थन तथा प्रशंसा से एक मूर्ख भी विरुद्ध कार्य कर सकता है परंतु अपने आसपास के लोगों की निंदा स्तुति की बिल्कुल परवाह न करते हुए सर्वदा सत्कार में लगे रहने वाला वास्तव में सबसे बड़ा त्याग है नमिता भाषण अंकुर याद नशा हम समाज के देवता तिथि पूजा शुरु गृहस्थ हो निर्धारित गृहस्थ का प्रधान कर्तव्य जीविकोपार्जन करना है परंतु से ध्यान रखना चाहिए कि वह झूठ बोल कर दूसरों को धोखा देकर तथा चोरी करके ऐसा ना करें और उसे यह भी याद रखना चाहिए कि उसका जीवन ईश्वर सेवा तथा गरीबों के लिए ही है मातरम पर तरस जाए व साक्षात प्रत्यक्ष देवता मतवाली निषेध सदा सर्वदा यह समझकर की माता और पिता ईश्वर के साक्षात रूप है गृहस्थ को चाहिए कि वह उन्हें सदैव सब प्रकार से प्रसन्न रखें दुष्टा या मात्री शिव दृष्टि पुत्री पार्वती तफरी तेरे भगत देवी परब्रह्म प्रसिद्ध थी यदि उसके माता-पिता प्रसन्न रहते हैं तो ईश्वर उसके प्रति प्रसन्न होते हैं और धर्म परिहान समुंदर जन्म परिभाषा मित्र और ग्रेनर कुरुवीय दीक्षित आत्मनों हितम मातरम विक्रम विकसित स्टेशन संभ्रमा ज्ञान विशेष संस्कृत पत्र शासन अपने माता-पिता के सम्मुख आदित्य परिहास चंचलता अथवा क्रोध प्रकट ना करें वह पुत्र वास्तव में श्रेष्ठ है जो अपने माता-पिता के प्रति एक भी कटु शब्द नहीं कहता माता-पिता के दर्शन कर उसे चाहिए कि वह उन्हें आदर पूर्वक प्रणाम करें उनके आने पर वह खड़ा हो जाए और जब तक मैं उससे बैठने को ना कहें तब तक ना बैठे मातरम पित्र पुत्र धारा तीन सौ ग्राम इटवा ग्रीन अपनी यात्रा में कंठ कलेर पंचवा गुरू बंधु युक्तेश्वर ओरम भरा यह लोग के घर पर अनार की भगवत प्रसाद जो गृहस्थ अपने माता-पिता बच्चों स्त्री तथा अतिथि को बिना भोजन कराएं स्वयं कर लेता है वह पाप का भागी होता है जनावर देते हो जनक इन प्रायोजित योजनाएं शिक्षित प्रीति आश्रम स्थान पर इतनी सामर्थ्य महेशाम कृत्वा कष्ट संध्या प्रिय संत या धर्म सनातन

आता है उन्हें प्रसन्न करने के लिए मनुष्य को हजार हजार कष्ट भी सैनी चाहिए नवभारत तारीख वापी मात्र मत पालिए सत्यजीत घोर कष्ट भी यदि साध्वी पतिव्रता रितेश सुविधा रेशों स्वयं मन्या संस्कृत डिस्टेंस उत्साह विद्वान अन्यथा नारखी भवेत् निर्देशन एवं क्षेत्रीय आयुक्त भाषण स्टेडियम शौर्य मदर सैद धन्यवाद सा प्रेम ना संध्या मृत भाषण सततम् तो शायद धारा न प्रियंवदा चरित यस्मिन अरे महेश आनी दुष्टा भार्या पतिव्रता सर्वधर्म हफ्ते भगवती प्रिया एवं इसी प्रकार मनुष्य को अपनी स्त्री के प्रति भी कर्तव्य है गृहस्थ को अपनी स्त्री को कभी डरना नहीं चाहिए और उसका मात्र व्रत पालन करना चाहिए यदि उसकी स्त्री साध्वी और पतिव्रता है तो वह कष्ट में भी उसका त्याग ना करें जो मनुष्य अपनी स्त्री के अतिरिक्त किसी दूसरी स्त्री का कलुषित मंच चिंतन करता है वह घोर नरक में जाता है ज्ञानी मनुष्य को चाहिए कि वह पर स्त्री के साथ निर्जन में शयन यावास ना करें क्योंकि अनुचित बातें ना करें और मैंने यह किया वह किया आदि कहकर अपने मुंह से अपनी बड़ाई ना करें अपनी स्त्री को धन वस्त्र प्रेम श्रद्धा एवं अमृत्तुल्य वाक्य द्वारा प्रसन्न रखें और उसे किसी प्रकार शब्द ना करें हे पार्वती जो पुरुष अपनी पतिव्रता स्त्री का प्रेम भाजन बनने में सफल होता है उसे समझो कि अपने स्वधर्म के आचरण में सफलता मिल गई ऐसा व्यक्ति तुम्हारा प्रिय होता है पुत्र कन्या के प्रति गृहस्थ के निम्नलिखित कर्तव्य हैं 4 वर्ष की अवस्था तक पुत्रों का खूब लाड प्यार करना चाहिए 16 वर्ष की अवस्था तक उन्हें नाना विद सद्गुणों और विद्याओं की शिक्षा देनी चाहिए जब वे 20 वर्ष के हो जाएं तो उन्हें किसी काम में लगा देना चाहिए तब पिता को चाहिए कि उन्हें अपनी बराबरी का समझ कर उनके प्रति स्नेह प्रदर्शन करें ठीक इसी तरह कन्याओं का भी लालन पालन करना चाहिए उनकी शिक्षा बहुत ध्यान पूर्वक होनी चाहिए और जब उनका विवाह हो तो पिता को उन्हें ताना भूषण आदि देने चाहिए इसी प्रकार गृहस्थ को अपने भाई-बहन भतीजे भांजे तथा अन्य सगे संबंधी मित्र एवं नौकरों का भी पालन करना चाहिए और उन्हें संतुष्ट रखना चाहिए गृहस्थ को यह भी चाहिए कि वह स्वधर्म रात अपने ग्राम वासियों अभ्यागत और उदासीन ओं का पालन करें जय देवी धन संपन्न होते हुए भी जो गृहस्थ अपने कुटुंब योद्धा निर्धनों की सहायता नहीं करता वह निंदनीय और पापी है उसे तो पशु तो ले ही समझना चाहिए हस्त को अत्यंत निद्रा आलस्य दिगिसेवा केस विन्यास तथा भोजन वस्त्र में आसक्ति का त्याग करना चाहिए उसे आहार निद्रा भाषण मैथुन इत्यादि सब बातें परमिट रूप से करनी चाहिए उसे अकबर भाई अभ्यंतर सोच संपन्न निराला और उद्योग शील होना चाहिए सूरत

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